अपनी 13 साल की बेटी से हर रोज संबन्ध बनाता था पिता, सजा सुनाते वक्त जज ने कही ये बातें...

पिता अपनी 13 साल की बेटी के साथ महीनों तक घिनौनी हरकत करता रहा। इसके बाद भी उसका दिल नहीं भरा तो उसने एक और शर्मनाक हरकत कर डाली। जज ने भी सजा सुनाते वक्त ये बातें कही...
विशेष सत्र न्यायाधीश (पॉक्सो) डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार शर्मा ने नाबलिग पुत्री से दुराचार करने के आरोपी पिता को धारा 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 में दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। आरोपी को अंतिम सांस तक जेल में रहने की सजा सुनाई गई है। आरोपी मानव तस्करी के मामले में पहले से ही उम्र कैद की सजा काट रहा है।
न्यायालय ने पीड़िता को प्रतिकर के रूप में सात लाख रुपये देने के आदेश भी पारित किए हैं। आदेश में जिलाधिकारी अल्मोड़ा से अपेक्षा की है कि वह पीड़िता की शिक्षा को निरंतर बनाए रखेंगे और उसे स्वरोजगारपरक प्रशिक्षण उपलब्ध कराएंगे।
ज्ञात हो कि आरोपी पिता ने अपनी तेरह साल की नाबालिग पुत्री की शादी गत 28 फरवरी को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ निवासी 38 वर्षीय व्यक्ति से कर दी थी। शिकायत मिलने पर एनटीडी पुलिस ने दोनों पक्षों के लोगों को एनटीडी में गिरफ्तार कर लिया था। नाबालिग बालिका को किशोरी सदन भेज दिया था।
इस तरह खुला राज

यह मामला विशेष सत्र न्यायालय में चला था। न्यायालय ने गत 30 अक्तूबर को मानव तस्करी के इस मामले में पिता को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इसके अलावा दोनों पक्षों के पंडितों, दूल्हे समेत सात लोगों को भी सजा सुनाई थी। आरोपी पिता वर्तमान में उम्र कैद की सजा काट रहा है।
गत मई महीने में नाबालिग किशोरी ने किशोरी सदन की अधीक्षिका को बताया कि पिता ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया था। किशोरी की ओर से राजस्व उप निरीक्षक पनुवानौला के यहां पिता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई। बाद में मामला रेगुलर पुलिस को स्थानांतरित हुआ। आरोपी पिता के खिलाफ विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) के न्यायालय में मामला चला।
अभियोजन की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता गिरीश चंद्र फुलारा, विशेष लोक अभियोजक भूपेंद्र कुमार जोशी, निर्भया प्रकोष्ठ की वरिष्ठ अधिवक्ता अभिलाषा तिवारी ने प्रभावी पैरवी की। न्यायालय में गत 23 दिसंबर को आरोपी पिता पर धारा 376 और पॉक्सो एक्ट में दोष सिद्ध हुआ था।
न्यायालय ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए पॉक्सो अधिनियम की धारा छह के अंतर्गत आरोपी को उम्रकैद से दंडित किया है। साथ ही पॉक्सो नियमावली 2012 के नियम सात के अंतर्गत अनुसूचित जाति की पीड़िता को सात लाख रुपये प्रतिकर देने का भी आदेश दिया है।
फैसले के वक्त जज ने कही ये बातें

न्यायालय ने माना की पिता ने जघन्य अपराध किया है। सजा के प्रश्न पर न्यायालय द्वारा कहा गया कि यदि कानून के स्रोतों पर ध्यान आकर्षित किया जाए तो ऐसे अपराध के लिए मृत्युदंड देना समीचीन है। न्यायालय ने फैसले में रामचरितमानस, वेदों, उपनिषदों, बाइबिल और कुरान का भी जिक्र किया।
रामचरितमानस के किष्किंधा कांड की चौपाई (अनुज वधू, भगनी, सुत नारी, सुन सठ कन्या ये सम चारी। इन्हें कुदृष्टि विलोकत जोई, ताहि वधे कछु पाप ना होई।) का उल्लेख फैसले में किया गया है। इसका आशय है कि छोटे भाई की पत्नी, पुत्रवधू, पुत्री और बहन ये चारों पुत्री के समान होती हैं।
यदि कोई व्यक्ति इन पर कुदृष्टि रखता हो तो उसका वध करने में कोई पाप नहीं होता।  सत्र न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां पर कानून का शासन स्थापित है।
कानून में जो सजा का प्रावधान होगा उसी के अनुसार सजा दी जाएगी। न्यायालय का न्यायिक विवेक सजा के प्रश्न पर कानून के स्रोतों से प्रभावित नहीं हो सकता। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने अभियुक्त को धारा छह के अंतर्गत आजीवन कारावास की सजा सुनाईऱ्। उन्होंने कहा कि दोषी अंतिम सांस तक जेल में ही रहेगा।

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